वात दोष क्या है : आयुर्वेदिक उपचार और उससे संबंधित समस्यायें

Highlights

वात के आयुर्वेदिक उपचार और अन्य जानकारी

 

आयुर्वेद के अनुसार, मनुष्य शरीर में उत्पन्न होने वाली सेहत संबंधित समस्यायें तीन प्राकृतिक गुणों और ऊर्जाओं से प्रचलित होती हैं।

वात, पित्त, और कफ।

जहां कफ़ दोष पानी और पृथ्वी से संबंध रखता है, पित्त दोष से अग्नि और जल संबंधित हैं और वात दोष शरीर में वायु और अंतरिक्ष तत्वों के संतुलन के रख रखाव में सहायता करता है।

परंतु शरीर में वात की मात्रा अधिक या अनधिक होने से अनेक समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। इस blog में हम ऐसी ही कुछ वात संबंधित समस्यायों और उन के आयुर्वेदिक उपचार पर प्रकाश डालेंगे।

बने रहिए और आगे पढ़िए वात का आयुर्वेदिक उपचार जान ने के लिए।

वात दोष क्या है?

वात दोष मनुष्य शरीर में वायु और अंतरिक्ष संबंधित अनेक प्रक्रियायों का संतुलन मान्य करता है। इस दोष को सब से अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार वायु पाचन अग्नि को सशक्त करती है, सभी इंद्रियों को प्रबंधित करती है और उत्साह का केंद्र होती है।

वात की एक विशेषता यह है के ये अन्य दोनों दोषों के साथ जुड़कर भिन्न रूप ले लेता है। पित्त दोष से मिल कर वात में गर्मी के गुण आ जाते हैं और कफ से जुड़ कर वात में शीतलता और गीलेपन वाले गुण आ जाते हैं।

वात के गुण

वात के मुख्य गुण

  • रूखापन
  • शीतलता
  • लघु
  • सूक्ष्मता
  • खुरदुरापन
  • चंचलता
  • चिपचिपाहट से रहित

इन में से रूखापन वात का एक स्वाभाविक गुण है जिस की अनुभूति वात दोष के सामान्य संतुलन में नहीं की जा सकती। वहीं अगर वात अधिक या अनधिक हो जाये तो ये गुण अनुभव में आ सकते हैं।

इन्ही वात संबंधित गुणों के आधार पर यह स्थित किया जा सकता है के शरीर में वात दोष का स्तर अधिक या अनधिक है। जैसे की नींद आने में परेशानी, या त्वचा में रूखापन और रूखेपन के कारण आवाज़ में भारीपन और सर और बालों में रूखापन वात को संकेतित करते हैं।

इस के अतिरिक्त, मनुष्य शरीर में अधिक वात होने से स्वभाव पर भी प्रभाव पड़ता है। वात प्रकृति वाले लोग अधिकतम निर्णय बहुत जल्दी ले लेते हैं, उन्हें शीघ्र ही ग़ुस्सा आने की संभावना बनी रहती है, परंतु साथ ही वे इन बातों को जल्दी भूल भी जाते हैं।

वात दोष बढ़ने के कारण

आयुर्वेद ज्ञान के अनुसार शरीर में वात अनेक कारणों से बढ़ सकता है। निम्नलिखित कारण उन में से विशेष हैं।

  • मल-मूत्र या छींक को रोककर रखना
  • खाए हुए भोजन को पचने का समय ना देना और उस के पचने से पहले ही और भोजन ग्रहण कर लेना
  • रात को देर से सोना
  • अधिक ऊँचे स्वर में बोलना
  • क्षमता से अधिक श्रम करना
  • यात्रा करते समय गाड़ी में गंभीर झटके लगना
  • तीखी और कडवी चीजों का आवश्यकता से अधिक सेवन करना
  • अत्यधिक मात्रा में सूखे मेवे (dry fruits) खाना
  • अत्यधिक चिंता से ग्रसित रहना
  • ठंडे खाद्य पदार्थों का अत्यधिक सेवन करना

वैसे तो ऊपर लिखे सभी कारणों से वात दोष में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है, किंतु बूढ़े व्यक्तियों के लिए इन से बचाव अधिक अनिवार्य है। तथा शीत ऋतु में प्रत्येक व्यक्ति को अधिक ध्यान रखना चाहिए।

वात का आयुर्वेदिक उपचार: वात संतुलन सामान्य करने के लिए घरेलू उपाय

वात दोष के स्तर को संतुलित करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने आहार और जीवनशैली में कुछ बदलाव लाने की आवश्यकता हो सकती है।

स्पष्ट रूप से कहा जाये तो वात जिन कारणों से तीव्रता से बढ़ता है, उन कारणों से बचाव करना अनिवार्य है।

उचित परिणाम पाने के लिए वात के निम्नलिखित उपचारों का पालन करें।

सामान्य वात संतुलन के लिए उचित आहार

  • घी, तेल और अधिक फैट वाली चीजों का सेवन करें।
  • गेंहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ से बने खाद्य पदार्थ अपने आहार में सम्मिलित करें।
  • छाछ, मक्खन, पनीर, और उबले हुए गाय के दूध का सेवन करें।
  • घी में भुने हुए सूखे मेवे खाएं या फिर बादाम,कद्दू के बीज, तिल के बीज, और सूरजमुखी के बीजों को पानी में भिगोकर रखें और कुछ समय बाद खाएं।
  • खीरा, गाजर, चुकंदर, पालक, शकरकंद जैसी शाकों का नियमित रूप से सेवन करें।
  • मूंग दाल, राजमा, सोया दूध खायें और पियें।

वात प्रकृति वाले व्यक्तियों को किन खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए

वात दोष की अति से ग्रसित व्यक्तियों को इन खाद्य पदार्थों का सेवन कम करना चाहिए।

  • साबुत अनाज जैसे कि बाजरा, जौ, मक्का, ब्राउन राइस आदि।
  • पत्तागोभी, फूलगोभी, ब्रोकली आदि।
  • नाशपाती, कच्चे केले आदि फल।
  • जाड़ों के दिनों में ठंडे पेय पदार्थ जैसे कि कोल्ड कॉफ़ी, ब्लैक टी, ग्रीन टी, फलों के जूस आदि।

जीवनशैली के लिए निर्देश

जैसा कि हम ने ऊपर कहा, वात दोष को संतुलित करने के लिए जीवनशैली और आहार संबंधित प्रतिक्रियाओं में परिवर्तन आवश्यक है। नीचे पढ़िए ऐसे ही कुछ अभ्यास जो आप के शरीर में वात का उचित और स्वस्थ संतुलन स्थापित करेंगे।

  • अपने प्रतिदिन के आवश्यक कामों की सूची को ध्यान में रखते हुए एक दिनचर्या बनायें और उस का पालन करने की चेष्टा अवश्य करें।
  • देह को शक्ति प्रदान करने वाले व्यायामों का प्रतिदिन अभ्यास करें।
  • गुनगुने तिल के तेल से प्रतिदिन शरीर की मालिश करें। अपनी प्रकृति के अनुसार उचित अभ्यांग तेल का चयन करने के लिए हमारे आयुर्वेदिक चिकित्सक से वार्तालाप भी कर सकते हैं।
  • प्रतिदिन कुछ समय धूप में टहलने और आराम करने में अवश्य बिताएँ।
  • योग और ध्यान को अपने जीवनशैली का एक अनिवार्य भाग बनायें। ऐसा करने से ना केवल वात, पर अन्य दोनों दोष भी उचित संतुलन में बने रहेंगे और शारीरिक व मानसिक स्वस्थ बेहतर होगा।

सारांश

अपनी सेहत को स्वस्थ रखना और अपने जीवन को सुखी रूप से व्यतीत करने हेतु वात, पित्त और कफ गुणों का सामान्य संतुलन मान्य करना अति आवश्यक है। इस blog के माध्यम से हम वात का आयुर्वेदिक उपचार अपने पाठकों के साथ संझा करना चाहते थे। अंत करने से पूर्व सारांश पर प्रकाश डालते हुए हम यह कामना करते हैं और आशा करते हैं के यह blog आप के लिए सहायक सिद्ध हो।

हम ने इस blog से यह जाना के,

  • वात दोष शरीर में वायु और आकाश तत्वों का का विधिवत शासन सुनिश्चित करता है।
  • रूखापन, शीतलता, लघु, सूक्ष्मता, खुरदुरापन, चंचलता, चिपचिपाहट से रहित सभी वात के मुख्य गुण हैं।
  • वात दोष बढ़ने के अनेक कारण हैं और उन का ज्ञान, समाधान हेतु अति आवश्यक है।
  • आपके शरीर में अधिक या अनधिक वात मात्राओं को संतुलित करने के लिए अनेक विधि हैं। उचित आहार और नियमित जीवनशैली इन में से मुख्य हैं और इन ही दोनों के विषय में हम ने विस्तार पूर्वक चर्चा की है।

About The Author